वासना के देवता कामदेव और कलयुग की समीक्षा

इस ब्रहमाण्ड के निर्माणकर्ता भगवान ब्रह्मा और सृष्टि के संहारकर्ता शिवजी पर कामदेव ने अपना प्रभाव दिखाया.दोनो ही देवता कामदेव से प्रभावित हुए । ऋषि नारद जो भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं, वे भी कामदेव से पीड़ीत हुए और माया के वशीभूत होकर परमात्मा को भी श्राप दे दिया । अन्य ऋषिगण भी कामदेव की चपेट में आये । विश्वामित्र जिन्होने गायत्री को प्रकट किया और गायत्री की कृपा प्राप्त की, ऐसे ऋषि पर भी कामदेव ने हमला किया,और इतना प्रभाव डाला कि परिणाम स्वरूप शकुन्तला का जन्म हुआ.ऋषि पाराशर महान तपस्वी और ऋषियों में अग्रगण्य अध्यात्म में बली,विज्ञानवेत्ता भी कामदेव से पीडित हुए,और व्यासजी का जन्म हुआ.कहने का अभिप्राय है कि हमारे ऋषि महऋषि महान योगी,तपस्वी थे,लेकिन काम पर विजय वे भी प्राप्त नही कर सके,काम के वशीभूत होकर गिरे लेकिन उन्होने पुन: तपकरने के बाद अपने पाप का प्राय्श्चित कर लिया.जिसके कारण उनकी कीर्ति अमर रही.असुर उसी के प्रभाव के अनुसार संसार उन्हें पूजता है,और आदर की द्रष्टि से देखता है.गोस्वामी तुलसी दासजी ने रामायण में कहा है:-अति विचित्र रघुपति कर माया.छूटहिं काम करहिं जो दाया,शिव चतुरानन देखि डराहीं,अपर जीव के लेखे माहीं,व्यापि रहेउ संसार महुं,माया करक प्रचंड,सेनापति कामादि भट,दंभ कपट पाखंड,सो दासी रघुबीर कै,समझे मिथ्या सौंपि,छूट न राम कृपा बिनु नाथ कहेउ पद रोपि.यह कलयुग है,और कलयुग मल से पूर्ण है,महऋषि भृगु की वाणी के अनुसार कलयुग वायु मे मिश्रित हो जाता है.और वायु द्वारा कलियुग भक्त विरक्त सन्यासी बुद्धिजीवी के मस्तक को छूता है,तो उनकी बुद्धि मे विवाद पैदा हो जाता है.और उस कलयुगी वायु के प्रकोप से अपने श्रेय साधन से गिर जाते हैं.और बुद्धि मलीन हो जाती है.केवल जिनको ईश्वर का सहारा ही है,ऐसे भक्त गण कलियुग के ग्रास नही बनते.कामदेव ने देवाधिदेव को नही छोडा,तो इस भयंकर काल में हमारा क्या होगा,हम कब माया की चपेत मे आजायेंगे,इसका कुछ पता नही.याद रखें जन्म जन्मान्तर की तपस्या को पूर्ण करने के लिये शनि महात्मा बनाता है.यदि जरा सी असावधानी बरती,और शास्त्र आज्ञा का उलंघन किया,और मनमानी कर बैठे,तथा श्रेय साधन से गिर गये,तो प्रायश्चित रूप में जन्म पर जन्म लेने पडेंगे,और परमात्मा का दिव्य रस पान नही हो सकेगा.कबीरदासजी ने इसका सुन्दर विश्लेषण किया है-साधु कहावन कठिन है,जैसे पेड खजूर.चढे तो चाखे प्रेम रस,गिरे तो चकनाचूर.गोस्वामी जी ने मानस मे कहा है,नारी के नेत्रों से किसका जिगर भेदन नही हुआ है,उदाहरण मिलता है,केवल हनुमानजी,उनको नारी नयन का सर नही लगा था.हनुमानजी को काम क्रोध मोह,कोई भी अपना प्रभाव नही दिखा सके,उनके अन्दर माया भी नही व्यापी.इसका कारण यही था कि हनुमानजी ने अपनी सत्ता को अपनी सत्ता नही मानी,उन्होने भगवान राम को ही सब कुछ माना,इसी लिये ही वे भक्तों मे अग्रगण्य रहे.और माया से विचलित नही हुए.कहा भी है:-"है परमवीर बलवान मदन,इससे सब देव ऋषि हारे,तब मानव की क्या गिनती है,सोचो समझो दुनिया वारे,कलयुग ने ग्रसे सब धर्म कर्म,पाखण्ड दम्भ प्रचण्ड किया,माया मोह का पास डाल,मानव जीवन पथ भ्रष्ट किया,कलि मदन ग्रास नही हो सकते,हरिजन यदि हरि को सुमिरेंगे,तब होगा सफ़ल मानव जीवन,हरि ह्रदय मे जाय समाओगे.".