शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है.जो लोग अनुचित बातों के द्वारा अपनी चलाने की कोशिश करते हैं,जो बात समाज के हित में नही होती है और उसको मान्यता देने की कोशिश करते है,अहम के कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते हैं,अनुचित विषमता,अथवा अस्वभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि उनको ही पीडित करता है.शनि हमसे कुपित न हो,उससे पहले ही हमे समझ लेना चाहिये,कि हम कहीं अन्याय तो नही कर रहे हैं,या अनावश्यक विषमता का साथ तो नही दे रहे हैं.यह तपकारक ग्रह है,अर्थात तप करने से शरीर परिपक्व होता है,शनि का रंग गहरा नीला होता है,शनि ग्रह से निरंतर गहरे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर गिरती रहती हैं.शरी में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है.सूर्य पुत्र शनि दुख दायक,शूद्र वर्ण,तामस प्रकृति,वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है. शनि सीमा ग्रह कहलाता है,क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है,वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है.जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना,शनि का विशेष गुण है.यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है.विपत्ति,कष्ट,निर्धनता,देने के साथ साथ बहुत बडा गुरु तथा शिक्षक भी है,जब तक शनि की सीमा से प्राणी बाहर नही होता है,संसार में उन्नति सम्भव नही है.शनि जब तक जातक को पीडित करता है,तो चारों तरफ़ तबाही मचा देता है.जातक को कोई भी रास्ता चलने के लिये नही मिलता है.करोडपति को भी खाकपति बना देना इसकी सिफ़्त है. अच्छे और शुभ कर्मों बाले जातकों का उच्च होकर उनके भाग्य को बढाता है,जो भी धन या संपत्ति जातक कमाता है,उसे सदुपयोग मे लगाता है.गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलायेगा.साथ ही धर्म पर चलने की प्रेरणा देकर तपस्या और समाधि आदि की तरफ़ अग्रसर करता है.अगर कर्म निन्दनीय और क्रूर है,तो नीच का होकर भाग्य कितना ही जोडदार क्यों न हो हरण कर लेगा,महा कंगाली सामने लाकर खडी कर देगा,कंगाली देकर भी मरने भी नही देगा,शनि के विरोध मे जाते ही जातक का विवेक समाप्त हो जाता है.निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है,प्रयास करने पर भी सभी कार्यों मे असफ़लता ही हाथ लगती है.स्वभाव मे चिडचिडापन आजाता है,नौकरी करने वालों का अधिकारियों और साथियों से झगडे,व्यापारियों को लम्बी आर्थिक हानि होने लगती है.विद्यार्थियों का पढने मे मन नही लगता है,बार बार अनुत्तीर्ण होने लगते हैं.जातक चाहने पर भी शुभ काम नही कर पाता है.दिमागी उन्माद के कारण उन कामों को कर बैठता है जिनसे करने के बाद केवल पछतावा ही हाथ लगता है.शरीर में वात रोग हो जाने के कारण शरीर फ़ूल जाता है,और हाथ पैर काम नही करते हैं,गुदा में मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके सही रूप से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से गुदा मार्ग में मुलायम भाग में जख्म हो जाते हैं,और भगन्दर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं.एकान्त वास रहने के कारण से सीलन और नमी के कारण गठिया जैसे रोग हो जाते हैं,हाथ पैर के जोडों मे वात की ठण्डक भर जाने से गांठों के रोग पैदा हो जाते हैं,शरीर के जोडों में सूजन आने से दर्द के मारे जातक को पग पग पर कठिनाई होती है.दिमागी सोचों के कारण लगातार नशों के खिंचाव के कारण स्नायु में दुर्बलता आजाती है.अधिक सोचने के कारण और घर परिवार के अन्दर क्लेश होने से विभिन्न प्रकार से नशे और मादक पदार्थ लेने की आदत पड जाती है,अधिकतर बीडी सिगरेट और तम्बाकू के सेवन से क्षय रोग हो जाता है,अधिकतर अधिक तामसी पदार्थ लेने से कैंसर जैसे रोग भी हो जाते हैं.पेट के अन्दर मल जमा रहने के कारण आंतों के अन्दर मल चिपक जाता है,और आंतो मे छाले होने से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं.शनि ऐसे रोगों को देकर जो दुष्ट कर्म जातक के द्वारा किये गये होते हैं,उन कर्मों का भुगतान करता है.जैसा जातक ने कर्म किया है उसका पूरा पूरा भुगतान करना ही शनिदेव का कार्य है. शनि की मणि नीलम है.प्राणी मात्र के शरीर में लोहे की मात्रा सब धातुओं से अधिक होती है,शरीर में लोहे की मात्रा कम होते ही उसका चलना फ़िरना दूभर हो जाता है.और शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते हैं.इसलिये ही इसके लौह कम होने से पैदा हुए रोगों की औषधि खाने से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चाहिये कि शनि खराब चल रहा है.शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है.इसका उच्च तुला राशि में और नीच मेष राशि में अनुभव किया जाता है.इसकी धातु लोहा,अनाज चना,और दालों में उडद की दाल मानी जाती है.