शनिदेवता : वैदूर्य कांति रमल:,प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत: . अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद: भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है,तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है,तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है,ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं. शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं.शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है.लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक,अशुभ और दुख कारक माना जाता है.पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं.लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है,जितना उसे माना जाता है.इसलिये वह शत्रु नही मित्र है.मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है.सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है,और हर प्राणी के साथ न्याय करता है.जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है.
पौराणिक संदर्भ: शनि के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं.माता के छल के कारण पिताने उसे शाप दिया.पिता अर्थात सूर्य ने कहा,"तू क्रूरतापूर्ण द्रिष्टि देखने वाला मंदगामी ग्रह हो जाये".यह भी आख्यान मिलता है कि शनि के प्रकोप से ही अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दसरथ उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका पुरुषार्थ देख कर शनि ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा.राजा दसरथ ने विधिवत स्तुति कर उसे प्रसन्न किया.पद्म पुराण में इस प्रसंग का सविस्तार वर्णन है.ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने जगत जननी पार्वती को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ.एक बार जब विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने शनि से पूंछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो,क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं,तो शनि महाराज ने उत्तर दिया,"मातेश्वरी,उसमे मेरा कोई दोष नही है,परमपिता परमात्मा ने मुझे तीनो लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया हुआ है,इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है,उसे दंड देना मेरा काम है".एक आख्यान और मिलता है,कि किस प्रकार से ऋषि अगस्त ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी,तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी.जिस किसी ने भी अन्याय किया,उनको ही उन्होने दंड दिया,चाहे वह भगवान शिव की अर्धांगिनी सती रही हों,जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की यज्ञ में हवन कुंड मे जल कर मरने के लिये शनि देव ने विवश कर दिया,अथवा राजा हरिश्चन्द्र रहे हों,जिनके दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और,शमशान की रखवाली तक करनी पडी,या राजा नल और दमयन्ती को ही ले लीजिये,जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा,और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं,फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा,वाचा,कर्मणा,पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में,उसे भुगतना तो पडेगा ही. मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है,वे गिद्ध पर सवार है,हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है,शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है.शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं. पश्चिम के साहित्य मे भी अनेक आख्यान मिलते हैं,शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,भारत में भी शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,जैसे शिंगणापुर ,वृंदावन के कोकिला वन,ग्वालियर के शनिश्चराजी,दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनि के मन्दिर हैं.

शनि के प्रति अन्य जानकारियां

शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है.जो लोग अनुचित बातों के द्वारा अपनी चलाने की कोशिश करते हैं,जो बात समाज के हित में नही होती है और उसको मान्यता देने की कोशिश करते है,अहम के कारण अपनी ही बात को सबसे आगे रखते हैं,अनुचित विषमता,अथवा अस्वभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि उनको ही पीडित करता है.शनि हमसे कुपित न हो,उससे पहले ही हमे समझ लेना चाहिये,कि हम कहीं अन्याय तो नही कर रहे हैं,या अनावश्यक विषमता का साथ तो नही दे रहे हैं.यह तपकारक ग्रह है,अर्थात तप करने से शरीर परिपक्व होता है,शनि का रंग गहरा नीला होता है,शनि ग्रह से निरंतर गहरे नीले रंग की किरणें पृथ्वी पर गिरती रहती हैं.शरी में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है.सूर्य पुत्र शनि दुख दायक,शूद्र वर्ण,तामस प्रकृति,वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है. शनि सीमा ग्रह कहलाता है,क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है,वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है.जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना,शनि का विशेष गुण है.यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है.विपत्ति,कष्ट,निर्धनता,देने के साथ साथ बहुत बडा गुरु तथा शिक्षक भी है,जब तक शनि की सीमा से प्राणी बाहर नही होता है,संसार में उन्नति सम्भव नही है.शनि जब तक जातक को पीडित करता है,तो चारों तरफ़ तबाही मचा देता है.जातक को कोई भी रास्ता चलने के लिये नही मिलता है.करोडपति को भी खाकपति बना देना इसकी सिफ़्त है. अच्छे और शुभ कर्मों बाले जातकों का उच्च होकर उनके भाग्य को बढाता है,जो भी धन या संपत्ति जातक कमाता है,उसे सदुपयोग मे लगाता है.गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलायेगा.साथ ही धर्म पर चलने की प्रेरणा देकर तपस्या और समाधि आदि की तरफ़ अग्रसर करता है.अगर कर्म निन्दनीय और क्रूर है,तो नीच का होकर भाग्य कितना ही जोडदार क्यों न हो हरण कर लेगा,महा कंगाली सामने लाकर खडी कर देगा,कंगाली देकर भी मरने भी नही देगा,शनि के विरोध मे जाते ही जातक का विवेक समाप्त हो जाता है.निर्णय लेने की शक्ति कम हो जाती है,प्रयास करने पर भी सभी कार्यों मे असफ़लता ही हाथ लगती है.स्वभाव मे चिडचिडापन आजाता है,नौकरी करने वालों का अधिकारियों और साथियों से झगडे,व्यापारियों को लम्बी आर्थिक हानि होने लगती है.विद्यार्थियों का पढने मे मन नही लगता है,बार बार अनुत्तीर्ण होने लगते हैं.जातक चाहने पर भी शुभ काम नही कर पाता है.दिमागी उन्माद के कारण उन कामों को कर बैठता है जिनसे करने के बाद केवल पछतावा ही हाथ लगता है.शरीर में वात रोग हो जाने के कारण शरीर फ़ूल जाता है,और हाथ पैर काम नही करते हैं,गुदा में मल के जमने से और जो खाया जाता है उसके सही रूप से नही पचने के कारण कडा मल बन जाने से गुदा मार्ग में मुलायम भाग में जख्म हो जाते हैं,और भगन्दर जैसे रोग पैदा हो जाते हैं.एकान्त वास रहने के कारण से सीलन और नमी के कारण गठिया जैसे रोग हो जाते हैं,हाथ पैर के जोडों मे वात की ठण्डक भर जाने से गांठों के रोग पैदा हो जाते हैं,शरीर के जोडों में सूजन आने से दर्द के मारे जातक को पग पग पर कठिनाई होती है.दिमागी सोचों के कारण लगातार नशों के खिंचाव के कारण स्नायु में दुर्बलता आजाती है.अधिक सोचने के कारण और घर परिवार के अन्दर क्लेश होने से विभिन्न प्रकार से नशे और मादक पदार्थ लेने की आदत पड जाती है,अधिकतर बीडी सिगरेट और तम्बाकू के सेवन से क्षय रोग हो जाता है,अधिकतर अधिक तामसी पदार्थ लेने से कैंसर जैसे रोग भी हो जाते हैं.पेट के अन्दर मल जमा रहने के कारण आंतों के अन्दर मल चिपक जाता है,और आंतो मे छाले होने से अल्सर जैसे रोग हो जाते हैं.शनि ऐसे रोगों को देकर जो दुष्ट कर्म जातक के द्वारा किये गये होते हैं,उन कर्मों का भुगतान करता है.जैसा जातक ने कर्म किया है उसका पूरा पूरा भुगतान करना ही शनिदेव का कार्य है. शनि की मणि नीलम है.प्राणी मात्र के शरीर में लोहे की मात्रा सब धातुओं से अधिक होती है,शरीर में लोहे की मात्रा कम होते ही उसका चलना फ़िरना दूभर हो जाता है.और शरीर में कितने ही रोग पैदा हो जाते हैं.इसलिये ही इसके लौह कम होने से पैदा हुए रोगों की औषधि खाने से भी फ़ायदा नही हो तो जातक को समझ लेना चाहिये कि शनि खराब चल रहा है.शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है.इसका उच्च तुला राशि में और नीच मेष राशि में अनुभव किया जाता है.इसकी धातु लोहा,अनाज चना,और दालों में उडद की दाल मानी जाती है.