शनि के चमत्कारिक सिद्ध पीठों में तीन पीठ ही मुख्य माने जाते हैं,इन सिद्ध पीठों मे जाने और अपने किये गये पापॊं की क्षमा मागने से जो भी पाप होते हैं उनके अन्दर कमी आकर जातक को फ़ौरन लाभ मिलता है.जो लोग इन चमत्कारिक पीठों को कोरी कल्पना मानते हैं,उअन्के प्रति केवल इतना ही कहा जा सकता है,कि उनके पुराने पुण्य कर्मों के अनुसार जब तक उनका जीवन सुचारु रूप से चल रहा तभी तक ठीक कहा जा सकता है,भविष्य मे जब कठिनाई सामने आयेगी,तो वे भी इन सिद्ध पीठों के लिये ढूंढते फ़िरेंगे,और उनको भी याद आयेगा कि कभी किसी के प्रति मखौल किया था.अगर इन सिद्ध पीठों के प्रति मान्यता नही होती तो आज से साढे तीन हजार साल पहले से कितने ही उन लोगों की तरह बुद्धिमान लोगों ने जन्म लिया होगा,और अपनी अपनी करते करते मर गये होंगे.लेकिन वे पीठ आज भी ज्यों के त्यों है और लोगों की मान्यता आज भी वैसी की वैसी ही है.
महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ
मुख्य लेख: शनि मंदिर, शिंग्लापुर
शिंगणापुर गांव मे शनिदेव का अद्भुत चमत्कार है.इस गांव में आज तक किसी ने अपने घर में ताला नही लगाया,इसी बात से अन्दाज लगाया जा सकता है कि कितनी महानता इस सिद्ध पीठ में है.आज तक के इतिहास में किसी चोर ने आकर इस गांव में चोरी नही की,अगर किसी ने प्रयास भी किया है तो वह फ़ौरन ही पीडित हो गया.दर्शन,पूजा,तेल स्नान,शनिदेव को करवाने से तुरन्त शनि पीडाओं में कमी आजाती है,लेकिन वह ही यहां पहुंचता है,जिसके ऊपर शनिदेव की कृपा हो गयी होती है.
मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मन्दिर
महावीर हनुमानजी के द्वारा लंका से फ़ेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है,शनिशचरी अमावश्या को यहां मेला लगता है.और जातक शनि देव पर तेल चढाकर उनसे गले मिलते हैं.साथ ही पहने हुये कपडे जूते आदि वहीं पर छोड कर समस्त दरिद्रता को त्याग कर और क्लेशों को छोड कर अपने अपने घरों को चले जाते हैं.इस पीठ की पूजा करने पर भी तुरन्त फ़ल मिलता है.
उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मन्दिर
लोगों की हंसी करने की आदत है.रामायण के पुष्पक विमान की बात सुन कर लोग जो नही समझते थे,वे हंसी किया करते थे,जब तक स्वयं रामेश्वरम के दर्शन नही करें, तब तक पत्थर भी पानी में तैर सकते हैं,विश्वास ही नही होता ,लेकिन जब रामकुन्ड के पास जाकर उस पत्थर के दर्शन किये और साक्षात रूप से पानी में तैरता हुआ पाया तो सिवाय नमस्कार करने के और कुछ समझ में नही आया. जब भगवान श्री कृष्ण का बंशी बजाता हुआ एक पैर से खडा हुआ रूप देखा तो समझ में आया कि विद्वानों ने शनि देव के बीज मंत्र में जो (शं) बीज का अच्छर चुना है,वह अगर रेखांकित रूप से सजा दिया जाये तो वह और कोई नही स्वयं शनिदेव के रूप मे भगवान श्री कृष्ण ही माने जायेंगे.यह सिद्ध पीठ कोसी से छ: किलोमीटर दूर और नन्द गांव से सटा हुआ कोकिला वन है,इस वन में द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जो सोलह कला सम्पूर्ण ईश्वर हैं,ने शनि को कहावतों और पुराणों की कथाओं के अनुसार दर्शन दिया,और आशीर्वाद भी दिया कि यह वन उनका है,और जो इस वन की परिक्रमा करेगा,और शनिदेव की पूजा अर्चना करेगा,वह मेरी कृपा की तरह से ही शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकेगा.और जो भी जातक इस शनि सिद्ध पीठ के प्रति दर्शन,पूजा पाठ का अन्तर्मुखी होकर सद्भावना से विश्वास करेगा,वह भी शनि के किसी भी उपद्रव से ग्रस्त नही होगा.यहां पर शनिवार को मेला लगता है.जातक अपने अपने श्रद्धानुसार कोई दंडवत परिक्रमा करता है,या कोई पैदल परिक्रमा करता है,जो लोग शनि देव का राजा दसरथ कृत स्तोत्र का पाथ करते हुए,या शनि के बीज मंत्र का जाप करते हुये परिक्रमा करते हैं,उनको अच्छे फ़लों की शीघ्र प्राप्ति हो जाती है.
महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ
मुख्य लेख: शनि मंदिर, शिंग्लापुर
शिंगणापुर गांव मे शनिदेव का अद्भुत चमत्कार है.इस गांव में आज तक किसी ने अपने घर में ताला नही लगाया,इसी बात से अन्दाज लगाया जा सकता है कि कितनी महानता इस सिद्ध पीठ में है.आज तक के इतिहास में किसी चोर ने आकर इस गांव में चोरी नही की,अगर किसी ने प्रयास भी किया है तो वह फ़ौरन ही पीडित हो गया.दर्शन,पूजा,तेल स्नान,शनिदेव को करवाने से तुरन्त शनि पीडाओं में कमी आजाती है,लेकिन वह ही यहां पहुंचता है,जिसके ऊपर शनिदेव की कृपा हो गयी होती है.
मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मन्दिर
महावीर हनुमानजी के द्वारा लंका से फ़ेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है,शनिशचरी अमावश्या को यहां मेला लगता है.और जातक शनि देव पर तेल चढाकर उनसे गले मिलते हैं.साथ ही पहने हुये कपडे जूते आदि वहीं पर छोड कर समस्त दरिद्रता को त्याग कर और क्लेशों को छोड कर अपने अपने घरों को चले जाते हैं.इस पीठ की पूजा करने पर भी तुरन्त फ़ल मिलता है.
उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मन्दिर
लोगों की हंसी करने की आदत है.रामायण के पुष्पक विमान की बात सुन कर लोग जो नही समझते थे,वे हंसी किया करते थे,जब तक स्वयं रामेश्वरम के दर्शन नही करें, तब तक पत्थर भी पानी में तैर सकते हैं,विश्वास ही नही होता ,लेकिन जब रामकुन्ड के पास जाकर उस पत्थर के दर्शन किये और साक्षात रूप से पानी में तैरता हुआ पाया तो सिवाय नमस्कार करने के और कुछ समझ में नही आया. जब भगवान श्री कृष्ण का बंशी बजाता हुआ एक पैर से खडा हुआ रूप देखा तो समझ में आया कि विद्वानों ने शनि देव के बीज मंत्र में जो (शं) बीज का अच्छर चुना है,वह अगर रेखांकित रूप से सजा दिया जाये तो वह और कोई नही स्वयं शनिदेव के रूप मे भगवान श्री कृष्ण ही माने जायेंगे.यह सिद्ध पीठ कोसी से छ: किलोमीटर दूर और नन्द गांव से सटा हुआ कोकिला वन है,इस वन में द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जो सोलह कला सम्पूर्ण ईश्वर हैं,ने शनि को कहावतों और पुराणों की कथाओं के अनुसार दर्शन दिया,और आशीर्वाद भी दिया कि यह वन उनका है,और जो इस वन की परिक्रमा करेगा,और शनिदेव की पूजा अर्चना करेगा,वह मेरी कृपा की तरह से ही शनिदेव की कृपा प्राप्त कर सकेगा.और जो भी जातक इस शनि सिद्ध पीठ के प्रति दर्शन,पूजा पाठ का अन्तर्मुखी होकर सद्भावना से विश्वास करेगा,वह भी शनि के किसी भी उपद्रव से ग्रस्त नही होगा.यहां पर शनिवार को मेला लगता है.जातक अपने अपने श्रद्धानुसार कोई दंडवत परिक्रमा करता है,या कोई पैदल परिक्रमा करता है,जो लोग शनि देव का राजा दसरथ कृत स्तोत्र का पाथ करते हुए,या शनि के बीज मंत्र का जाप करते हुये परिक्रमा करते हैं,उनको अच्छे फ़लों की शीघ्र प्राप्ति हो जाती है.