दूसरे भाव में शनि

दूसरा भाव भौतिक धन का भाव है,भौतिक धन से मतलब है,रुपया,पैसा,सोना,चान्दी,हीरा,मोती,जेवरात आदि,जब शनि देव दूसरे भाव मे होते है तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते है,अपने ही परिवार वालों से लडाई झगडा आदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते हैं,धन के मामले मै पता नही चलता है कितना आया और कितना खर्च किया,कितना कहां से आया,दूसरा भाव ही बोलने का भाव है,जो भी बात की जाती है,उसका अन्दाज नही होता है कि क्या कहा गया है,गाली भी हो सकती है और ठंडी बात भी,ठंडी बात से मतलब है नकारात्मक बात,किसी भी बात को करने के लिये कहा जाय,उत्तर में न ही निकले.दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है,चौथा भाव माता,मकान,और वाहन का भी होता है,अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया जाता है,दूसरा शनि होने पर यात्रा वाले कार्य और घर मे सोने के अलावा और कुछ नही दिखाई देता है.दूसरा शनि सीधे रूप मे आठवें भाव को देखता है,आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ़ रुझान बढा देता है,व्यक्ति भूत,प्रेत,जिन्न, और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है,शमशानी साधना के कारण उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब और भूत के भोजन में उसकी रुचि बढ जाती है.दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है,ग्यारहवां भाव अचल सम्पत्ति के प्रति अपनी आस्था को अन्धेरे मे रखता है,मित्रों और बडे भाई बहिनो के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है.वे कुछ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कुछ और ही समझ मे आता है.