दिमाग मे कई बार विचार आते हैं कि शनि के पास केवल परेशान करने के ही काम हैं,क्या शनि देव के और कोई काम नही हैं जो जातक को बिना किसी बात के चलती हुई जिन्दगी में परेशानी दे देते हैं,क्या शनि से केवल हमी से शत्रुता है,जो कितने ही उल्टे सीधे काम करते हैं,और दिन रात गलत काम में लगे रहते हैं,वे हमसे सुखी होते हैं,आखिर इन सबका कारण क्या है.इन सब भ्रान्तियों के उत्तर प्राप्त करने के प्रति जब समाजिक,धार्मिक,राजनैतिक,आर्थिक,और समाज से जुडे सभी प्रकार के ग्रन्थों को खोजा तो जो मिला वह आश्चर्यचकित कर देने वाला तथ्य था.आज के ही नही पुराने जमाने से ही देखा और सुना गया है जो भी इतिहास मिलता है उसके अनुसार जीव को संसार में अपने द्वारा ही मोक्ष के लिये भेजा जाता है.प्रकृति का काम संतुलन करना है,संतुलन में जब बाधा आती है,तो वही संतुलन ही परेशानी का कारण बन जाता है.लगातार आबादी के बढने से और जीविका के साधनों का अभाव पैदा होने से प्रत्येक मानव लगातार भागता जा रहा है,भागने के लिये पहले पैदल व्यवस्था थी,मगर जिस प्रकार से भागम भाग जीवन में प्रतिस्पर्धा बढी विज्ञान की उन्नति के कारण तेज दौडने वाले साधनों का विस्तार हुआ,जो दूरी पहले सालों में तय की जाती थी,वह अब मिनटों में तय होने लगी,यह सब केवल भौतिक सुखों के प्रति ही हो रहा है,जिसे देखो अपने भौतिक सुख के लिये भागता जा रहा है.किसी को किसी प्रकार से दूसरे की चिन्ता नही है,केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये किसी प्रकार से कोई यह नही देख रहा है कि उसके द्वारा किये जाने वाले किसी भी काम के द्वारा किसी का अहित भी हो सकता है,सस्दस्य परिवार के सदस्यॊं को नही देख रहे हैं,परिवार परिवारों को नही देख रहे हैं,गांव गांवो को नही देख रहे हैं,शहर शहरों को नही देख रहे हैं,प्रान्त प्रान्तों को नही देख रहे हैं,देश देशों को नही देख रहा है,अन्तराष्ट्रीय भागम्भाग के चलते केवल अपना ही स्वार्थ देखा और सुना जा रहा है.इस भागमभाग के चलते मानसिक शान्ति का पता नही है कि वह किस कौने मैं बैठ कर सिसकियां ले रही है,जब कि सबको पता है कि भौतिकता के लिये जिस भागमभाग में मनुष्य शामिल है वह केवल कष्टों को ही देने वाली है.जिस हवाई जहाज को खरीदने के लिये सारा जीवन लगा दिया,वही हवाई जहाज एक दिन पूरे परिवार को साथ लेकर आसमान से नीचे टपक पडेगा,और जिस परिवार को अपनी पीढियों दर पीढियों वंश चलाना था,वह क्षणिक भौतिकता के कारण समाप्त हो जायेगा.रहीमदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था कि -गो धन,गज धन बाजि धन,और रतन धन खान,जब आवे संतोष धन,सब धन धूरि समान.तो जिस संतोष की प्राप्ति हमे करनी है,वह हमसे कोसों दूर है.जिस अन्तरिक्ष की यात्रा के लिये आज करोंडो अरबों खर्च किये जा रहे हैं,उस अंतरिक्ष की यात्रा हमारे ऋषि मुनि समाधि अवस्था मे जाकर पूरी कर लिया करते थे,अभी ताजा उदाहरण है कि अमेरिका ने अपने मंगल अभियान के लिये जो यान भेजा था,उसने जो तस्वीरें मंगल ग्रह से धरती पर भेजीं,उनमे एक तस्वीर को देख कर अमेरिकी अंतरिक्ष विभाग नासा के वैज्ञानिक भी सकते में आ गये थे.वह तस्वीर हमारे भारत में पूजी जाने वाली मंगल मूर्ति हनुमानजी के चेहरे से मिलती थी,उस तस्वीर में साफ़ दिखाई दे रहा था कि उस चेहरे के आस पास लाल रंग की मिट्टी फ़ैली पडी है.जबकि हम लोग जब से याद सम्भाले हैं,तभी से कहते और सुनते आ रहे हैं,लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन,जय जय कपि सूर.आप भी नासा की बेब साइट फ़ेस आफ़ द मार्स को देख कर विश्वास कर सकते हैं,या फ़ेस आफ़ मार्स को गूगल सर्च से खोज सकते हैं. मै आपको बता रहा था कि शनि अपने को परेशानी क्यों देता है,शनि हमें तप करना सिखाता है,या तो अपने आप तप करना चालू कर दो या शनि जबरदस्ती तप करवा लेगा,जब पास में कुछ होगा ही नहीं,तो अपने आप भूखे रहना सीख जाओगे,जब दिमाग में लाखों चिन्तायें प्रवेश कर जायेंगी,तो अपने आप ही भूख प्यास का पता नही चलेगा.तप करने से ही ज्ञान,विज्ञान का बोध प्राप्त होता है.तप करने का मतलब कतई सन्यासी की तरह से समाधि लगाकर बैठने से नही है,तप का मतलब है जो भी है उसका मानसिक रूप से लगातार एक ही कारण को कर्ता मानकर मनन करना.और उसी कार्य पर अपना प्रयास जारी रखना.शनि ही जगत का जज है,वह किसी भी गल्ती की सजा अवश्य देता है,उसके पास कोई माफ़ी नाम की चीज नही है,जब पेड बबूल का बोया है तो बबूल के कांटे ही मिलेंगे आम नही मिलेंगे,धोखे से भी अगर चीटी पैर के नीचे दब कर मर गई है,तो चीटी की मौत की सजा तो जरूर मिलेगी,चाहे वह हो किसी भी रूप में.जातक जब जब क्रोध,लोभ,मोह,के वशीभूत होकर अपना प्राकृतिक संतुलन बिगाड लेता है,और जानते हुए भी कि अत्याचार,अनाचार,पापाचार,और व्यभिचार की सजा बहुत कष्टदायी है,फ़िर भी अनीति वाले काम करता है तो रिजल्ट तो उसे पहले से ही पता होते हैं,लेकिन संसार की नजर से तो बच भी जाता है,लेकिन उस संसार के न्यायाधीश शनि की नजर से तो बचना भगवान शंकर के बस की बात नहीं थी तो एक तुच्छ मनुष्य की क्या बिसात है.तो जो काम यह समझ कर किये जाते हैं कि मुझे कौन देख रहा है,और गलत काम करने के बाद वह कुछ समय के लिये खुशी होता है,अहंकार के वशीभूत होकर वह मान लेता है,मै ही सर्वस्व हूँ,और ईश्वर को नकारकर खुद को ही सर्व नियन्ता मन लेता है,उसकी यह न्याय का देवता शनि बहुत बुरी गति करता है.जो शास्त्रों की मान्यताओं को नकारता हुआ,मर्यादाओं का उलंघन करता हुआ,जो केवल अपनी ही चलाता है,तो उसे समझ लेना चाहिये,कि वह दंड का भागी अवश्य है.शनिदेव की द्रिष्टि बहुत ही सूक्षम है,कर्म के फ़ल का प्रदाता है,तथा परमात्मा की आज्ञा से जिसने जो काम किया है,उसका यथावत भुगतान करना ही उस देवता का काम है.जब तक किये गये अच्छे या बुरे कर्म का भुगतान नही हो जाता,शनि उसका पीछा नहीं छोडता है.भगवान शनि देव परमपिता आनन्द कन्द श्री कृष्ण चन्द के परम भक्त हैं,और श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा से ही प्राणी मात्र केर कर्म का भुगतान निरंतर करते हैं.यथा-शनि राखै संसार में हर प्राणी की खैर । ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर ॥
शनिदेवता :
वैदूर्य कांति रमल:,प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत: . अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:
भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है,तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है,तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है,ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं. शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं.शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है.लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक,अशुभ और दुख कारक माना जाता है.पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं.लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है,जितना उसे माना जाता है.इसलिये वह शत्रु नही मित्र है.मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है.सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है,और हर प्राणी के साथ न्याय करता है.जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है.

पौराणिक संदर्भ:
शनि के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं.माता के छल के कारण पिताने उसे शाप दिया.पिता अर्थात सूर्य ने कहा,"तू क्रूरतापूर्ण द्रिष्टि देखने वाला मंदगामी ग्रह हो जाये".यह भी आख्यान मिलता है कि शनि के प्रकोप से ही अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दसरथ उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका पुरुषार्थ देख कर शनि ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा.राजा दसरथ ने विधिवत स्तुति कर उसे प्रसन्न किया.पद्म पुराण में इस प्रसंग का सविस्तार वर्णन है.ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने जगत जननी पार्वती को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ.एक बार जब विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने शनि से पूंछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो,क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं,तो शनि महाराज ने उत्तर दिया,"मातेश्वरी,उसमे मेरा कोई दोष नही है,परमपिता परमात्मा ने मुझे तीनो लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया हुआ है,इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है,उसे दंड देना मेरा काम है".एक आख्यान और मिलता है,कि किस प्रकार से ऋषि अगस्त ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी,तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी.जिस किसी ने भी अन्याय किया,उनको ही उन्होने दंड दिया,चाहे वह भगवान शिव की अर्धांगिनी सती रही हों,जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की यज्ञ में हवन कुंड मे जल कर मरने के लिये शनि देव ने विवश कर दिया,अथवा राजा हरिश्चन्द्र रहे हों,जिनके दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और,शमशान की रखवाली तक करनी पडी,या राजा नल और दमयन्ती को ही ले लीजिये,जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा,और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं,फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा,वाचा,कर्मणा,पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में,उसे भुगतना तो पडेगा ही.
मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है,वे गिद्ध पर सवार है,हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है,शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है.शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं. पश्चिम के साहित्य मे भी अनेक आख्यान मिलते हैं,शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,भारत में भी शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,जैसे शिंगणापुर ,वृंदावन के कोकिला वन,ग्वालियर के शनिश्चराजी,दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनि के मन्दिर हैं.