शनिदेव परमकल्याण कर्ता न्यायाधीश और जीव का परमहितैषी ग्रह माना जाता है.ईश्वर पारायण प्राणी जो जन्म जन्मान्तर तपस्या करते हैं,तपस्या सफ़ल होने के समय अविद्या,माया से सम्मोहित होकर पतित हो जाते हैं,अर्थात तप पूर्ण नही कर पाते हैं,उन तपस्विओं की तपस्या को सफ़ल करने के लिये शनिदेव परम कृपालु होकर भावी जन्मों में पुन: तप करने की प्रेरणा देता है. द्रेष्काण कुन्डली मे जब शनि को चन्द्रमा देखता है,या चन्द्रमा शनि के द्वारा देखा जाता है,तो उच्च कोटि का संत बना देता है.और ऐसा व्यक्ति पारिवारिक मोह से विरक्त होकर कर महान संत बना कर बैराग्य देता है.शनि पूर्व जन्म के तप को पूर्ण करने के लिये प्राणी की समस्त मनोवृत्तियों को परमात्मा में लगाने के लिये मनुष्य को अन्त रहित भाव देकर उच्च स्तरीय महात्मा बना देता है.ताकि वर्तमान जन्म में उसकी तपस्या सफ़ल हो जावे,और वह परमानन्द का आनन्द लेकर प्रभु दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सके.यह चन्द्रमा और शनि की उपासना से सुलभ हो पाता है.शनि तप करने की प्रेरणा देता है.और शनि उसके मन को परमात्मा में स्थित करता है.कारण शनि ही नवग्रहों में जातक के ज्ञान चक्षु खोलता है.
- ज्ञान चक्षुर्नमस्तेअस्तु कश्यपात्मज सूनवे.तुष्टो ददासि बैराज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात.
- तप से संभव को भी असंभव किया जा सकता है.ज्ञान,धन,कीर्ति,नेत्रबल,मनोबल,स्वर्ग मुक्ति,सुख शान्ति,यह सब कुच तप की अग्नि में पकाने के बाद ही सुलभ हो पाता है.जब तक अग्नि जलती है,तब तक उसमें उष्मा अर्थात गर्मी बनी रहती है.मनुष्य मात्र को जीवन के अंत तक अपनी शक्ति को स्थिर रखना चाहिये.जीवन में शिथिलता आना असफ़लता है.सफ़लता हेतु गतिशीलता आवश्यक है,अत: जीवन में तप करते रहना चाहिये.मनुष्य जीवन में सुख शान्ति और समृद्धि की वृद्धि तथा जीवन के अन्दर आये क्लेश,दुख,भय,कलह,द्वेष,आदि से त्राण पाने के लिये दान,मंत्रों का जाप,तप,उपासना आदि बहुत ही आवश्यक है.इस कारण जातक चाहे वह सिद्ध क्यों न हो ग्रह चाल को देख कर दान,जप,आदि द्वारा ग्रहों का अनुग्रह प्राप्त कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करे.अर्थात ग्रहों का शोध अवश्य करे.
- जिस पर ग्रह परमकृपालु होता है,उसको भी इसी तरह से तपाता है.पदम पुराण में राजा दसरथ ने कहा है,शनि ने तप करने के लिये जातक को जंगल में पहुंचा दिया.यदि वह तप में ही रत रहता है,माया के लपेट में नहीं आता है,तप छोड कर अन्य कार्य नही करता है,तो उसके तप को शनि पूर्ण कर देता है,और इसी जन्म में ही परमात्मा के दर्शन भी करा देता है.यदि तप न करके और कुछ ही करने लगे यथा आये थे हरि भजन कों,ओटन लगे कपास,माया के वशीभूत होकर कुच और ही करने लगे,तो शनिदेव उन पर कुपित हो जाते हैं.
- विष्णोर्माया भगवती यया सम्मोहितं जगत.इस त्रिगुण्मयी माया को जीतने हेतु तथा कंचन एव्म कामिनी के परित्याग हेतु आत्माओं को बारह चौदह घंटे नित्य प्रति उपासना,आराधना और प्रभु चिन्तन करना चाहिये.अपने ही अन्त:करण से पूम्छना चाहिये,कि जिसके लिये हमने संसार का त्याग किया,संकल्प करके चले,कि हम तुम्हें ध्यायेंगे,फ़िर भजन क्यों नही हो रहा है.यदि चित्त को एकाग्र करके शान्ति पूर्वक अपने मन से ही प्रश्न करेंगे,तो निश्चित ही उत्तर मिलेगा,मन को एकाग्र कर भजन पूजन में मन लगाने से एवं जप द्वारा इच्छित फ़ल प्राप्त करने का उपाय है.जातक को नवग्रहों के नौ करोड मंत्रों का सर्व प्रथम जाप कर ले या करवा ले.