शनि ग्रह की पीडा से निवारण के लिये पाठ,पूजा,स्तोत्र,मंत्र, और गायत्री आदि को लिख रहा हूँ,जो काफ़ी लाभकारी सिद्ध होंगे.नित्य १०८ पाथ करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होगा.
- विनियोग:-शन्नो देवीति मंत्रस्य सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:,आपो देवता,शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:.
- नीचे लिखे गये कोष्ठकों के अन्गों को उंगलियों से छुयें.
- अथ देहान्गन्यास:-शन्नो शिरसि (सिर),देवी: ललाटे (माथा).अभिषटय मुखे (मुख),आपो कण्ठे (कण्ठ),भवन्तु ह्रदये (ह्रदय),पीतये नाभौ (नाभि),शं कट्याम (कमर),यो: ऊर्वो: (छाती),अभि जान्वो: (घुटने),स्त्रवन्तु गुल्फ़यो: (गुल्फ़),न: पादयो: (पैर).
- अथ करन्यास:-शन्नो देवी: अंगुष्ठाभ्याम नम:.अभिष्टये तर्ज्जनीभ्याम नम:.आपो भवन्तु मध्यमाभ्याम नम:.पीतये अनामिकाभ्याम नम:.शंय्योरभि कनिष्ठिकाभ्याम नम:.स्त्रवन्तु न: करतलकरपृष्ठाभ्याम नम:.
- अथ ह्रदयादिन्यास:-शन्नो देवी ह्रदयाय नम:.अभिष्टये शिरसे स्वाहा.आपो भवन्तु शिखायै वषट.पीतये कवचाय हुँ.(दोनो कन्धे).शंय्योरभि नेत्रत्राय वौषट.स्त्रवन्तु न: अस्त्राय फ़ट.
- ध्यानम:-नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी गृद्ध्स्थितस्त्रासकरो धनुश्मान.चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाअस्तु मह्यं वरदोअल्पगामी..
- शनि गायत्री:-औम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात.
- वेद मंत्र:- औम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:.
- जप मंत्र :- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: । नित्य २३००० जाप प्रतिदिन.